दोस्तों आज के दौर में क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमें होने वाले हर एक बारिक मूवमेंट भी क्रिकेट फैंस को देखने को मिलता है और आज के समय में ऐसे क्रिकेट फीचर का इस्तेमाल होने लगा है जिससे अंपायर को डिसीजन लेने में तो आसानी होती ही है।
और साथ में खिलाड़ियों को भी किसी प्रकार के गलत डिसीजन का सामना नहीं करना पड़ता। आप खुद कल्पना कीजिए अगर डी आर अस नहीं होता तो ना जाने कितने खिलाड़ियों को अंपायर के गलत डिसीजन का सामना करना पड़ता।
क्रिकेट मे इस्तेमाल होने वाली 10 बेहतरीन टेक्नोलॉजी। Top 10 Advance Technology Used in Cricket
दोस्तों अगर आप भी क्रिकेट के फैन हैं तो यह पोस्ट सिर्फ आपके लिए है। क्योंकि इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली कुछ अनोखी टेक्नोलॉजी के बारे में जिनके बारे में विस्तार से शायद ही आप जानते होंगे।
नंबर – 1 स्पाइडर कैमरा ड्रोन।
स्पाइडर कैमरा ड्रोन क्रिकेट के मैदान पर आपने अक्सर गौर किया होगा की लालटेन के साइज के कैमरे हवा में मूव करते हुए नजर आते हैं इन्हें स्पाइडर कैमरा कहा जाता है और ड्रोन तो आप जानते ही होंगे यानी की उड़ने वाला कैमरा और क्रिकेट के मैदान पर इन्हें तार की मदद से हवा में मूव कराया जाता है और ये मैदान पर हो रहे क्रिकेट मैच पर ऊपर से नजर रखते हैं।
और दोस्तों यह जो कैमरे होते हैं इसे इतनी पतली केवल और तार की मदद से मूव कराया जाता है की यह हमें नॉर्मल दिखाई नहीं देता और स्पाइडर कैमरा की मदद से हमें बेस्ट क्रिकेट शॉट देखने को मिल पाते हैं। और इस कैमरे की मदद से हम छक्के और चौके का बेस्ट रिव्यू भी देख सकते हैं।
नंबर – 2 अंपायर कैमरा।
अंपायर कैमरा इस कैमरे को खास अंपायर के लिए बनाया गया है जो उनके कैप के ऊपर फिट रहता है और इसकी मदद से अंपायर की नजर कहां पर है इस बात का पता चल जाता है और साथ में इसे इसलिए भी इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इससे अंपायर के फील्ड में होने वाले रिव्यू क्लियर मिल जाता है।
और अंपायर कैमरा की मदद से टीवी या मोबाइल से क्रिकेट देखने वाले को भी एक नया एंगल मिल पता है और इस कैमरे से खिलाड़ियों को कोई फायदा नहीं मिलता। हालांकि आपने देखा होगा की जब बाल अंपायर के करीब से गुजराती है तो उसे बिल्कुल क्लियर दिखाए जाता है और यह सब अंपायर कैमरा की मदद से ही मुमकिन हो पाता है।
नंबर – 3 बॉलिंग मशीन।
बॉलिंग मशीन एक बॉलर की तरह काम करती है। जैसे एक बॉलर अलग अलग तरीके से बॉल फेक सकता है। ठीक इसी तरह बॉलिंग मशीन भी अलग-अलग तरीके से बाल फेक सकती है। इस मशीन के इस्तेमाल से बैट्समैन बिना बॉलर के सेट पर प्रैक्टिस कर सकता है और अपने हिसाब से इस मशीन को सेट कर सकता है। दोस्तों यह मशीन हर फॉर्मेट में गेंदबाजी करा सकती है चाहे वह इन स्विंग हो या आउट स्विंग या फिर फ़ास्ट और स्पिन क्यों ना हो।
इस मशीन के जरिये हर तरह की गेंदबाजी की प्रैक्टिस खिलाड़ी आराम से कर सकते हैं। इस मशीन को मशीन में लगे ऑपरेटिंग सिस्टम से तो चला ही सकते हैं साथ ही साथ इसे अपने फोन और लैपटॉप के जरिए भी कंट्रोल किया जा सकता है और चलाया जा सकता है। इस मशीन में एक बार में छतीस गेंदे डिलीवरी की जा सकती है और बोलिंग मशीन में बैट्समैन किसी भी स्पीड में प्रैक्टिस कर सकता है।
नंबर – 4 एलईडी स्टंप्स।
एलईडी स्टंप्स बेल्स दोस्तों पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेट में बहुत बदलाव देखने को मिले हैं इन्हीं में से एक है एलईडी स्टंप्स और बेल यह दिन गए जब टीम में किसी टूर्नामेंट की जीत का जश्न स्टंप को उखाड़ कर करती थी और अपने साथ एक याद के तोर पर ले जया करती थी और स्टंप्स को जीत की याद के तोर पर ले जान में एम एस धोनी उस समय फेमस थे।
और एलईडी स्टंप को सबसे पहले आईसीसी मेंस वर्ल्ड कप 2014 में इस्तेमाल किया गया था और अब इसे हर एक टूर्नामेंट में इस्तेमाल किया जाता है। एलईडी स्टंप्स देखने में जितनी अट्रैक्टिव होती है काम भी उतना शानदार करती है जब गेंद इन स्टम्प से टकराती है और बेल उनसे अलग हो जाति है। तब इसमें लाइट जलना शुरू हो जाता है और ऐसे में रन आउट स्टंपिंग जैसे डिसीजन देने में अंपायर को आसानी हो जाती है।
नंबर – 5 हॉट स्पॉट।
हॉट स्पॉट यह एक खास तरह की टेक्नोलॉजी है जिसकी मदद से गेंद के स्पॉट पॉइंट का पता लगाया जाता है। गेंद जहां भी टच होती है वहां पर एक व्हाइट स्पॉट बन जाता है और हॉट स्पॉट टेक्नोलॉजी की मदद से यह पता लगाया जाता है की बोल ने बैटमेन के किस हिस्से को टच किया है यानी वह बॉल बैट्समैन के पैड या फिर बैट्समैन की बॉडी पर कहां टच हुई है इसके लिए फील्ड के दो तरफ दो इंफ्रारेड कैमरे लगाएं जाते हैं।
यह कैमरा बॉल द्वारा बैट्समैन के पैड या बल्ले पर हिट किया जान पर हिट किये जाने की इमेज को कैप्चर करता है और इसके बाद यह ब्लैक और व्हाइट पिक्चर के साथ गेंद के स्पॉट को बताता है और अगर गेंद बल्ले से मामूली सी भी टच हुई है तो बल्ले पर एक व्हाइट स्पॉट बन जाता है जिससे थर्ड अंपायर को डिसीजन लेने में आसानी होती है।
इस टेक्नोलॉजी की मदद से बोलिंग और बैटिंग की समीक्षा की जाती है। यानी गेंदबाज ने कितनी गेंद शॉर्ट फूल और गुड लेंथ पर की ठीक इसी तरह बल्लेबाज किन गेंदों पर ज्यादा बींट हुए हैं और किन पर बेहतर खेला, इन सब का पता पिच विजन टेक्नोलॉजी की मदद से लगाया जाता है और इस तकनीक की मदद से मैच के दौरान फेके जाने वाली हर गेंद पर नजर राखी जाति है।
यानी गेंदबाज ने पिच पर कहां गेंद फेकी और बल्लेबाज ने किन गेंद को कहां खेला है इस तकनीक का यूं तो मैच के दौरान कोई बड़ा काम नहीं होता लेकिन इसकी मदद से बल्लेबाज और गेंदबाज अपना प्रदर्शन सुधार सकते हैं और साथ ही बल्लेबाज और गेंदबाज की कमजोरी का पता चल जाता है जिससे बलर और बैट्समैन अपने कमजोरी का पता करके अपने गेम को सुधार सकते हैं।
नंबर – 6 स्टंप कैमरा।
स्टंप कैमरा इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल स्टंप में कैमरा लगाकर किया जाता है। साथ ही एक माइक भी लगा दिया जाता है ताकि जरूरत के बाद स्टम कैमरा से डिसीजन दिया जा सके। इस बार इसमें फ्रंट के साथ-साथ रिवर्स कैमरा का भी इस्तेमाल किया जा रहा है और पिच के दोनों छोर पर जो स्टंप होते हैं उसमें से मिडिल स्टंप में कैमरा लगा होता है।
साथ ही इसके पीछे की तरफ एक माइक भी लगाया जाता है। इस तकनीक से मैच के दौरान रन आउट का डिसीजन या फिर गेंदबाज के हाथ से लगकर गेंद स्टम्प को टकराती है तब उस डिसीजन को देने में आसानी हो जाति है।
नंबर – 7 स्किनोमीटर।
स्किनोमीटर ये टेक्नोलॉजी क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में इस्तेमाल में लाई जाति है और इसका उपयोग तब किया जाता है जब बोल बल्ले के बिल्कुल करीब से निकलती है और अम्पायर को यह समझ नहीं आता की बॉल बल्ले से टच हुई है या नहीं और फिर थर्डमीटर स्किनोमीटर की मदद से चेक कर लेते हैं।
और उसके बाद सस्किनोमीटर की मदद से ये देखा जाता है की गेंद ने बल्ले को छुआ है या नहीं। अगर गेंद बल्ले से जरा से भी टच हुई है तो फिर स्किनोमीटर पर वेव आ जाति है और यह टेक्नोलॉजी साउंड पर काम करती है। जब कोई गेंदबाज बोलिंग करता है तो उसके हाथ से छुटने के बाद बल्लेबाज के बल्ले से टकराने या कीपर के दसस्त्ताने तक पहुंचने के सफर के दौरान गेंद की हरकत पर स्कनोमीटर से नजर राखी जाती है।
नंबर – 8 अल्ट्रा एज स्किनोमीटर।
अल्ट्रा एज स्किनोमीटर की एक विकसित तकनीक है। यह तकनीक स्टंप के अंदर लगे माइक और पिच और मैदान के आसपास लगे विभिन्न कैमर का उपयोग करती है। जब कोई गेंद बल्ले को टच करती है, तो गंद विशेष ध्वनि को उत्प करती है जिसे विकेट माइक द्वारा उठाया जाता है और ट्रैकिंग स्क्रीन पर इसका पता लगाया जाता है।
इस टेक्नोलॉजी की मदद से यह पता लगाया जाता है की बॉल बैट्समैन के बल्ले से टच हुई है या नहीं और आज के समय में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल वर्ल्ड क्रिकेट में बहुत ज्यादा होने लगा है।
नंबर – 9 डिसीजन रिव्यू सिस्टम।
डीआरएस का फूल फॉर्म डिसीजन रिव्यू सिस्टम है। इसके तहत अगर किसी भी टीम के खिलाड़ी को लगता है कि अंपायर का फैसला गलत है तो वह फील्डिंग के दौरान कप्तान और बल्लेबाजी के दौरान स्ट्राइक छोर पर खड़ा बल्लेबाज हाथ से टी का निशान बनाकर रिव्यू ले सकता है। इसके लिए पंद्रह सेकंड का समय दिया जाता है और इसके बाद थर्ड अंपायर फिर से पड़ताल कर फैसला देते हैं।
यदि मांग सही होती है तो थर्ड अंपायर ऑनफील्ड अंपायर के निर्णय को बदल देते हैं। ऐसे में डीआरएस भी खत्म नहीं होता। लेकिन अगर खिलाड़ियों की मांग गलत साबित होती है तब डीआरएस खर्च हो जाता है। और दोस्तों आपको बता दें कि डीआरएस का दूसरा नाम धोनी रिव्यू सिस्टम भी कहा जाता है। क्योंकि डीआरएस के मामले में धोनी अब तक के सबसे सफल कप्तान रहे हैं।
नंबर – 10 हॉक-आई।
इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल क्रिकेट, बैटमिंटन और अन्य खेलो में किया जाता है और क्रिकेट में तो इसको कई वर्षो से इस्तेमाल किया जा रहा है यह टेक्नोलॉजी थर्ड एम्पायर को निर्णय लेने में मदद करती है और हॉक-आई को थर्ड एम्पायर की आँख भी कहा जाता है।